सुख दुःख भी दो शब्दों के मेल से बना है।
सुख =सु + ख, 'सु ' अर्थात सुन्दर और 'ख' अर्थात अन्तः करणं।
जिसका अन्तः करणं सुन्दर और पवित्र हो ,वही वास्तव में सुखी है।
और मनुष्य का अन्तः करणं तभी सुन्दर और पवित्र हो सकता है, जब वह अपने वास्तविक स्वरुप से परिचित हो जाये।
यह केवल अध्यात्म के द्वारा ही संभव है।
अध्यातम का तो अर्थ ही है -आत्मा का अध्ययन , आत्मा का साक्षातकार।
इसलिए आत्म दर्शन ही वास्तविक सुख का आधार है।
सुख =सु + ख, 'सु ' अर्थात सुन्दर और 'ख' अर्थात अन्तः करणं।
जिसका अन्तः करणं सुन्दर और पवित्र हो ,वही वास्तव में सुखी है।
और मनुष्य का अन्तः करणं तभी सुन्दर और पवित्र हो सकता है, जब वह अपने वास्तविक स्वरुप से परिचित हो जाये।
यह केवल अध्यात्म के द्वारा ही संभव है।
अध्यातम का तो अर्थ ही है -आत्मा का अध्ययन , आत्मा का साक्षातकार।
इसलिए आत्म दर्शन ही वास्तविक सुख का आधार है।